जो मेरा मन कहे
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सोचा था इंसान बन कर निकलेंगे,गधे इस गली से
इस गली ने इन्सानों को ही,गधा बना दिया ।
यूं तो मालूम न था अब तक,पर जब मालूम चला तो
अच्छा भला देख सकता था,अंधा बना दिया ।
अब कंधों पर बोझ है,जिल्द बंधी चिन्दियों का
भीतर से काला कुर्ता,ऊपर उजला बना दिया ।
माना कि यहाँ दलदल,फिर भी है जाना इसी रस्ते से
इस रस्ते ने हर सस्ते को,महंगा बना दिया।
-यशवन्त यश ©
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